रहोगे न साथ मेरे
रहोगे न साथ मेरे
जाते हुए दिसम्बर की आहट ने याद दिलाया है ये बिखरे पत्ते, ये सर्द हवा, औरर तन्हाई ने तड़पाया है
पूछने है कुछ सवाल तुम भी तो लौट नहीं जाओगे एेसे जैसे जा रहा दिसम्बर रंगीन साल का हाथ छोड़कर..!
अभी तो है हरसू हर नज़ारा जवाँ महकती है तेरी-मेरी चाहत की बगिया
फूल सब मुरझाने की कगार पर होंगे खड़े तब भी तुम
रहोगे न साथ मेरे..!
चमचमाते आसमान पर हर तारे है झिलमिलाते
गर्दिश की दहलीज़ पर होंगे जब यही सारे तब भी तुम
रहोगे न साथ मेरे..!
जवाँ तन पर रुख़-ए-जमाल है अदाएँ कातिल
और इश्क में उफ़ान है झुर्रियों के संग भी जश्न मनाते तन को सहलाते
रहोगे न साथ मेरे..!
मोहब्बत की महफ़िल में शोलो की रवानी है
जिस्म है ज़िंदा हर धड़कन पर ख़ुमारी है
वादा करो लेकर तुम हाथों में हाथ मेरे
साँसों की माला के टूटने की आहट तक
रहोगे न साथ मेरे।।

