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Shakuntla Agarwal

Abstract Fantasy Others

4.5  

Shakuntla Agarwal

Abstract Fantasy Others

"रे साथी ! क्या होगा उस पार"

"रे साथी ! क्या होगा उस पार"

1 min
466


सोच - सोच मन घबराये,

जी लिये इस पार,

रे साथी ! क्या होगा उस पार,


मीत मिले प्रीत मिली,

जीवन जीने की सीख मिली,

लड़कपन खेल - खेल में गँवाया,

भरी जवानी देख इतराया,

आया बुढ़ापा मन घबराया,

देख लिया संसार,

रे साथी ! क्या होगा उस पार,


दुःख - दर्द बाँटना चाहूँ,

मुख से कुछ कह न पाऊँ,

कोई अपना नज़र नहीं आता,

यही देख मन घबराता,

कोड़ी - कोड़ी जो माया जोड़ी,

रह जायेगी इस पार,

रे साथी ! क्या होगा उस पार,


जर्जर काया नाँव पुरानी,

नौ द्वारों में सिमटी ज़िन्दगानी,

मन तो चाहें मैं तर जाऊँ,

जाकर नया चोला पाऊँ,

लेकर राम - नाम पतवार,

जाना चाहूँ उस पार,

रे साथी ! क्या होगा उस पार,


कंचन काया राख बनेंगी,

मर्ज़ी किसी की नहीं चलेगी,

ईश्वर जो चाहे वो ही होगा,

तू निर्मोही हो जा थोड़ा,

ममता में जो पड़ा रहा तो,

कर न पाये ये भव पार,

रे "शकुन" क्या होगा उस पार।।


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