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Surendra kumar singh

Romance

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Surendra kumar singh

Romance

रौशनी में नहा के आयी है

रौशनी में नहा के आयी है

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रौशनी में नहा के आयी है ग़ज़ल होगी

कुछ तो कहते हैं ये खुदाई है ,ग़ज़ल होगी।


है कोई शख्स जो सोचा है, उससे मिलने का

खूब रो रो के मुस्कराई है ग़ज़ल होगी।


आग में पांव कभी बर्फ सी जम जाती है

दूधमुंहे बच्चे की मस्ती में है ग़ज़ल होगी।


इस अंधेरे में चमकती है किरण की तरह

स्वप्न के पार हकीकत सी है ग़ज़ल होगी।


रोज आ आ के यहाँ लोग चले जाते हैं

आने जाने पे हंसा करती है ग़ज़ल होगी।


आंख से जब भी ढलकता है कुछ पानी की तरह

उसको पी पी के चहकती है तो ग़ज़ल होगी।


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