रौशन है बच्चों से घर
रौशन है बच्चों से घर
बच्चों की दुनिया भी देखो, क्या ख़ूब अजीब सी होती हैं
पल में हँसते पल में रोते, इक पल में ज़िद कर बैठते हैं
दुनिया की कोई फ़िक्र नहीं, बस अपनी धुन में रहते हैं
सारी दुनिया को वो, अपनी ही मुठ्ठियों में भरते हैं....!!
कहने को तो सारे बच्चे, रूप भगवान का कहलाते हैं
शायद इसीलिए कभी कभी वो, काम बड़ों से भी बड़ा कर दिखलाते हैं
उनकी हर इक बात अनूठी, रोते को भी हँसी दिलाते हैं
कर देते हैं नाक में दम, जब अपनी ही ज़िद पर उतर आते हैं....!!
घर रहता हैं खुशियोँ से रोशन, हर कोई देख हर्षाता हैं
हर घर में बच्चों से ही, सतरंगी कलियाँ खिलती और महकती है
चाँद सितारों से कम नहीं, मात पिता को अपने बच्चे लगते हैं
बच्चों की दुनिया, तब उनकी ख़ुद की दुनिया बन जाती हैं....!!
बच्चों की पहचान है नादानी, हर पल नया करतब दिखलाते हैं
बड़ों को वो कर देते मज़बूर, जब मिलकर हड़कंप मचाते हैं
बच्चों संग मिल जाएं दादी बाबा, चाचा और बुआ, तब उनकी चांदी होती हैं
जब किलकारी भरते वो तब हर कोना जन्नत सा लगने लगता है...!!
बिन बच्चों के घर हैं सुना, आँगन भी बिराना सा लगता हैं
जैसे बिन फूलों के बागियां, उजड़ा चमन सा लगता हैं
बिन डाली और फलों के दरख़्त ख़ाली, ठूँठ सा रहता है
जिन बच्चों के घर भी तो, नाममात्र का घर ही रहता है.....!!
