राज़
राज़
क्या ज़माने में आपसा है कोई ?
क्या किसी को यूँ चाहता है कोई
थक गए हम उन्हें मनाते हुए
इस तरह से भी रूठता है कोई ?
खामोशी ऐसी मार डालेगी
बोलिये तो अगर गिला है कोई
राज़ को अब भी राज़ रहने दो
ऐसी बातें भी पूछता है कोई ?
किसको तकलीफ़ है यहां
किससे अब कहाँ इतना सोचता है कोई
रब ही अपनी अमान में रख्खे
कितनी फैली हुई वबा है कोई।
अब दुआओं में भी नहीं है असर
इस मर्ज की नहीं दवा है कोई।