फिर आज
फिर आज
कलम उठा लिखने बैठी
सोचा लिख दूंं दर्द हजार
आंखों से आंसू छलके
पर लिख न पाई फिर आज
बंध गई सिसकी
बढ़ गई धड़कन
मन मे आया एक विचार
खुली हवा में जाकर देखा
पर हँस न पाई फिर आज
थक गए कंधे
झुक गई गर्दन
माना हूंं मैं बहुत लाचार
सबके पास जाकर देखा
पर पूछ न पाई फिर आज
कलम उठा लिखने बैठी
सोचा लिख दूंं दर्द हजार
आंखों से आँसू छलके
पर लिख न पाई फिर आज।
