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Anu Mishra

Abstract

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Anu Mishra

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फिर आज

फिर आज

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कलम उठा लिखने बैठी

सोचा लिख दूंं दर्द हजार

आंखों से आंसू छलके 

पर लिख न पाई फिर आज


बंध गई सिसकी 

बढ़ गई धड़कन

मन मे आया एक विचार

खुली हवा में जाकर देखा

पर हँस न पाई फिर आज


थक गए कंधे 

झुक गई गर्दन

माना हूंं मैं बहुत लाचार

सबके पास जाकर देखा


पर पूछ न पाई फिर आज

कलम उठा लिखने बैठी

सोचा लिख दूंं दर्द हजार

आंखों से आँसू छलके 

पर लिख न पाई फिर आज।


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