ख्वाहिश कोई और थी ..
ख्वाहिश कोई और थी ..
जो चाहा वो पाया नहीं
जो पाया वो भाया नहीं
बस.....
भावनाओ की ओर से
समझौते की डोर थी
मंजिल के भंंवर मेें
राह कोई और थी।
क्योंकि...
जहाँ रुके वहाँँ पाया नहीं
जहाँ झुके वहाँँ भाया नहीं
इसलिए.....
नम आंखो की कोर से
खुुुुशियों की भोर थी
अर्मूूत उम्मीदो के शोर में
मेरी ख्वाहिश कोई और थी ..!
