मालूम नहीं क्यूँ?
मालूम नहीं क्यूँ?
मन घबराने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
एक अँधेरा छाने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
पल पल हर पल
सताने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
हर वक़्त ही
उलझाने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
सब पाया था
सब खोने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
मंजिल सामने थी
रास्ता टूटने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
जानती थी सब
फिर भी समझाने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
जीवन हर पल
सबक सिखाने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
जानना चाहती थी
फिर भी छुपाने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
ख़ुशी दिखा कर
दर्द का एहसास दिलाने लगा था
मालूम नहीं क्यूँ
मालूम नहीं क्यूँ......?
