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Meera Ramnivas

Abstract

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Meera Ramnivas

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रात रोती है

रात रोती है

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सांझ ढली,

पंछी नीड़ को चले

ग्वाले अपनी गायों संग

 गांव को चले

तम छाया दीप जले

चांद निकला तारे निकले

चांदनी दमकने लगी

रात गहराने लगी

जंगल गांव शहर शांत हो गए

प्राणी गहरी नींद सो गए

चांद जाग कर रात भर पहरा देता है

फूल पत्तों पर ओस को देख चांद सोचता है

रात रोती है

कोई पीड़ा सहती है

चांद ने रात से रोने का कारण पूछ ही लिया

रात ने चांद को जवाब कुछ यूं दिया

अनाथ आश्रम में पलते बच्चे

रात को मां की गोद में सोने को तरसते हैं

मेरे नैन बरसते हैं

वृद्धाश्रम में रहते बुजुर्ग

रात को अपनों की याद में आंखें नम करते हैं

मेरे नैन बरसते हैं

सरहद पर हताहत जवानों के परिजन

रात को याद कर बिलखते हैं

मेरे नैन बरसते हैं

हवस खोर की शिकार लड़की

रात को पीड़ा से तन मन तड़पते हैं

मेरे नैन बरसते हैं

स्कूल जाने की उम्र में बच्चे भीख मांगते हैं

रात को आधा भूखा सो जाते हैं

मेरे नैन बरसते हैं

तुम को देख कर कितने ही विरही विरहा

बिछड़े महबूब से मिलने रात भर तरसते हैं

मेरे नैन बरसते हैं

विवाह के झांसे में देह व्यापार में धकेली गई

नाबालिग कन्या के नैन मां बाप के दर्शन को तरसते हैं

मेरे नैन बरसते हैं।।



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