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रात की बाँहों में

रात की बाँहों में

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लो सूरज धूप समेटे चला

दुधिया रात के आँचल तले 

थामें मेरा हाथ तुम

आँखे मूँदे ले चले मुझे

स्वप्न नगरी की सैर पर

फ़लक पुरा दीस रहा है

लग्नवेदी का मंडप,

कितना सुहाना मनभावन 

स्वर्ग सा सुंदर जहाँ है

पालकी सजी सोने सी

जिस पर

हौले से मुझे बिठाया

खुद अपने हाथों से पिया ने

सोलह शृंगार सजाया 

दुल्हन सी मैं सज गयी

हौले से एक बादल बरसा 

तारो की बरसात हुई 

सज गयी झिलमिल चुनरी मोरी 

चाँद की सुराही से छलक रही 

रुपहली चाँदी नशीली

भर गयी मेरी गोरी हथेली  

जैसे मेहंदी रच गयी मोरी 

चाँद का टीका सज गया

मेरी सुनी मांग भर गयी

रात की स्याही उतर गयी 

बन काजल नैना बस गई 

जुगनू जुड़ गये बन गया

गजरा जुड़ा जच गया मेरा 

ऊंगलीयों के कंगन

बन गये जब पकड़ी कलाई

पिया ने 

प्रेमी ने चूम लिया जब

पलकों को मेरी अधरों से

सपनें से मैं आ गिरी हकीकत 

के जहाँ मैं

टूट गया मेरा स्वर्ग से सुंदर 

प्यारा सपन सलोना

नैनों के कोरे भीग गये

मैं आधी अधूरी रह गई

लबों तक आकर छलक गया

मेरी प्रीत का पैमाना॥


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