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AMIT KUMAR

Romance

5.0  

AMIT KUMAR

Romance

रात भर जगती रही

रात भर जगती रही

1 min
389


रात भर जगती रही, ये आंख नम बहती रही,

पल एक ऐसा भी नही, बिन याद के गुजरी मेरी,

धड़कन भी है खामोश और, फिर टीस रह रह कर उठे,

ये लब भी हैं खामोश से, शिकवा भी दिल मे थी धरी।


अंजान था इस राह से, जो प्रेम पथ का है सफ़र,

महफ़िल भी ऐसी लग रही, सहरा का जैसा है सफ़र,

मुश्किल भी है तकलीफ भी, बेजान सा तन मन लगे,

दीदार हो या गुफ्तगू, ये लालसा दिल में पली।


सुबहा से होती शाम और, शाम से सुबहा मिले,

ये आंख देखे हर घड़ी, दीदार महबूबे मिले,

जिस दिन से देखा है तुम्हे, नदाने दिल बेचैन है,

फिर लौट आये वो घड़ी, बस आस दिल में है पली।


सहरा हसी लगाने लगा, तन्हाइयां गाती ग़ज़ल,

कुछ याद रहता ही नही, चेहरा तेरा लगता कमल।

मै सोचता हूँ क्या लिखूं, श्रृंगार में तेरे हसीं,

खोया हूँ बस यादों में ही, ग़ज़ल भी गाने लगी।


महफ़ूज हूँ यादों में बस, ताउम्र यादों में रहूँ,

उम्मीद फिर भी है बँधी, इक रोज संग तेरे रहूँ,

गर लौट आओगी यहां, वीरान जीवन मे कभी,

सोचता रहता हूँ मैं, वो पल मेरा होगा हसीं।


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