Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

राम जी का कृपा पात्र रावण

राम जी का कृपा पात्र रावण

2 mins
380


आज दोपहर राम जी आराम कर रहे थे

रावण के विषय में कुछ सोच रहे थे

तभी रावण राम जी से मिलने स्वयं आ गया,

राम जी चरणों में झुक गया

और हाथ जोड़कर कहने लगा।

प्रभु आप अंतर्यामी हैं

आप तो सब जानते हैं

फिर कुछ करते क्यों नहीं हैं?

राम जी ने उसे पास में लगे आसन पर

बैठने का इशारा किया,

जलपान के प्रबंध का आदेश दिया

फिर रावण से पूछा अब बताओ क्या कष्ट है

जो मुक्त होकर भी चैन नहीं है।

रावण हाथ जोड़कर वेदना भरे स्वर में बोला

बस! प्रभु एक मात्र समस्या मेरी है

आपने तो मारकर तार दिया था

फिर भी आज तक मुझे हर साल जलाया जा रहा है

मेरा खूब उपहास उड़ाया जा रहा है

मेरी आत्मा को अभी भी तड़पाया जा रहा है।

आप अपने भक्तों को समझाते क्यों नहीं?

मेरे साथ दुर्व्यवहार करने से 

भला उन्हें क्या मिल जाता है।

सच तो यह है प्रभु

ऐसा करने से मेरी फौज में मेरे सिपाहियों का

संख्या बल अनावश्यक बढ़ता जा रहा है

मेरे लिए उनकी जरूरतें पूरी करना

मेरे लिए उनकी जीविका का प्रबंधन 

मुश्किलें खड़ी कर रहा है।

अब केवल आप ही कुछ कर सकते हैं

मेरे साथ भी तो न्याय कीजिए

जो आपके हाथों मरकर तर गया हो

उसे ये साधारण मानव क्या फिर मार पायेंगे?

क्या ये आपसे भी ऊपर हो जायेंगे?

इतनी सामान्य सी बात

इनकी समझ में क्यों नहीं आ रहा है।

जो खुद रावण बने घूम रहे हैं

खुद को बड़ा राम भक्त कह रहे हैं

इतने भर से क्या ये मुझको मार पायेंगे?

आप ही इन्हें समझाइए और राह दिखाइए

कृपया इन्हें भी सद्बुद्धि प्रदान कीजिए

सब अपने अपने मन के रावण को 

पहले मारकर या जलाकर तो दिखाएं,

ऐसा कोई नया आदेश आप इन्हें सुनाएं।

रावण की बात सुन राम जी सोच में पड़ गए

फिर धीरे से बोले चिंता मत करो

मैं कुछ करता हूं तुम्हारे साथ भी न्याय हो

इसका कुछ प्रबंध जरुर करता हूँ

बड़ी शिकायतें मिल रही हैं आजकल रोज मुझे

अब मैं खुद ही इसका कोई स्थाई प्रबंध करता हूँ

तुम्हारे साथ कैसे न्याय हो?

इसका भी पुख्ता इंतजाम करता हूँ।

रावण चुपचाप खड़ा हो गया

राम जी को शीश झुकाकर नमन किया

और भाव विभोर हो संतुष्ट होकर

खुशी खुशी वापस लौट गया,

आज एक बार फिर रावण जैसे तर गया

रामजी की कृपा का फिर पात्र बन गया।

हमें ही नहीं आपको भी राम नाम का 

खूबसूरत आईना दिखा गया। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract