राजकुमार झोपड़ी का
राजकुमार झोपड़ी का
आँख आज उदास है वह,
सड़क भी सुनसान है,
फटे चिथड़ों के बीच बसता,
घर शोक ग्राह्यमान है।
कुछ और था ना पास उसके,
बस एक आशा थी सदा,
खोकर उसे अब सोचती है,
आज जीकर क्या करे।
जिसके लिए खुशियां खरीदी,
बेच अपनी ज़िंदगी,
जीवन का उसके आसरा था,
दुनिया में अब वो ना रहा।
जो झोपड़ी भी कल तलक उसे
महल समां लगती रही,
और आज पूरा ही मोहल्ला,
लग रहा शमशान सा।
लोग उससे पूछते हैं,
क्या उसे आज हो गया,
कैसे बताए इस जहां को,
झोपड़ी में रहने वाला,
उसका राजकुमार कहीं खो गया।
