राज़ नैनों का
राज़ नैनों का
नैनों में छिपे राज़ अनेक,
नैनों में छिपे राज़ अनेक।।
न कोई जान पाया है
ना जान पाएगा उन राजों को ।।
अनकही कहनी सुनाते है,
कोई समझ नहीं पाता है।।
कोई नशा छिपा हुआ है
नैनों में जो सबको बहला देते है।।
ऐसे राज़ है छिपे,
जो हर किसको
एक अलग कहानी
बयान करते है, करते है।।
आँसू बहते है पर वजह
कभी इतनी आसानी से
सामने आती नहीं या फिर
लाया नहीं जाता है सबसे।।
कोसो दूर खड़े को
सारे राज़ होते है पता,
मगर सामने खड़े को नहीं
अजीब खेल है नैनों का।।
खेल सब खेल पाते नहीं
जो खेल पाते है, वे जीत
नहीं पाते है , या यूँ कहूँ
जीतने के कोशिश में हार
स्वीकार कर लेते है लोग।।
इतने गहरे राज़ होते है,
जानने वाले पछताए
ना जानने वाले पछताए ,
यह एक जाल है बुना
सारे सुलझे उलझ जाते है।।
नैनों में ऐसे पहेली है
जो हार को सह पाए
दबा के आंसू अपने ,
और बहा देते है जीत में
इस परिणाम को सुलझा
ना पायेंगे कोई ,कोई नहीं।।
खुली किताब से होते है
नैनों में छिपे राज़ किंतु
आँखों में बंदी पट्टी सब
देख कर भी अनदेखा कर देता है।।
जब उतरे पट्टी बचे ना कुछ
हकीकत से मीलों दूर होते है
ग़लतफहमी के करीब हम कई बार
सामने पड़ा सच पड़ नहीं पाते है।।