किसे पता था।
किसे पता था।
जिंदगी का खेल बड़ा अनोखा,
आए दिन दिखाएं तमाशे अनेक।।
किस पल किसका आखिरी पल हो
जान ना पाया कोई, ना कोई।।
कोई इस विधि के खेल को
समझ ना पाया, ना डल पाया।।
जिंदगी का समुन्दर कब बूंद में बदला
कोई अंदाज़ा लगा ना पाया।।
पल में हर पल सिमट गया,
देखते देखते वो आखिरी पल आ गया।।
कहने अलविदा दुःख बरी इस जिंदगी को
उन बुलंद ऊंचाइयों को गले लगाते चल पड़े।
उस अंजान राह पर ,जहां ना कोई अपना है
ना कोई पराया है, अपनो से दूर
गैरों के करीब ,उस राह पर चल पड़े,
शायद अब कहीं तो सुकून मिले।।
