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B. sadhana

Abstract Tragedy Thriller

4  

B. sadhana

Abstract Tragedy Thriller

कब क्या होगा ?

कब क्या होगा ?

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जिंदगी का खेल बड़ा अजीब है,

खेलते तो सब है,मगर किस मोड़ पे

कौन हारता है ? कौन जीतता है ?

सोच सके ना कोई, ना कोई सोच पाए।।


किस पल में क्या हो? ना जानता कोई 

किस रह पे होगी मनजिल वोही अनजान

है सबसे।।कबी आगे तो कभी पीछे 

यह मंजिल तो अनजान है। अनजान है।।


पल बर की खुशी जीनदगी बर का गम

कब कैसे बनजाती है ,सोच ना सके कोई।।

सोचते सोचते बीत जाता है वो लम्हा

जिसके लिए करते इंतजार सदियों से हम।।


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