राह देखती किस पथिक की
राह देखती किस पथिक की
राह देखती किस पथिक की
तीर नदी के सकुचाई सी
मौन धरे सूखे अधरों पर
आशा का एक दीप जगाए।
खोल हृदय के बंद द्वार
राहों को वह रही निहार।
अश्रु की दो बूँद अटकी
पलकों को रह-रह भिगोती।।
नेह की गागर समेटे
श्र्वास की लड़ियाँ सहेजे।
बाट जोहती किस पथिक की
राह देखती किस पथिक की।।