प्यासा सावन
प्यासा सावन
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सावन है देखो जिधर,उधर दिखे हैं प्यास
तपती धरती है यहाँ, पानी की है आस।
बंजर होते खेत हैं, कैसे करें किसान
उमड़-घुमड़ बादल फिरे,सूख रहे हैं धान।
कभी चमकती बिजलियाँ, घन होते घनघोर
आस लगाते हैं सभी, चातक करते शोर।
प्यासा है सावन यहाँ, कौन बुझाये प्यास
तड़प रहे हैं लोग अब, पर मेघा है पास।
ऐसा अचरज तो कभी, हुआ नहीं हर बार
पर अब सावन माह में, देखो हाहाकार।