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बोधन राम निषाद राज

Abstract

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बोधन राम निषाद राज

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सावन

सावन

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सावन कितना स्वच्छ है,वन में देख बहार

हरियाली चहुँ ओर है, पर्वत के उस पार।


सावन झूला हैं लगे, अनुपम छटा बिखेर

ऐसे में साजन भला, करते हैं क्यों देर।


नदियों में पानी भरे, निर्मल मन अति भाय

धानी चुनरी ओढ़ ली, धरती लगे सुभाय।


धरती की आँगन सजे,डाल-डाल मुस्काय

शीतल मन्द समीर में,आँचल ज्यों लहराय।


शष्य श्यामला रूप में, वन उपवन हर्षाय

पागल मन अति प्रेम में, फूले नहीं समाय।


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