प्यार-मुहब्बत^^^^^^^^^^^
प्यार-मुहब्बत^^^^^^^^^^^
हो ना हो, तुम हो कहीं
ज़िन्दगी में शामिल मेरी।
फब्तियां यूं ही नहीं
कसते हैं लोग मुझपर।
मैं यारों की दिल्लगी समझ
हंसता रहा तेरे प्यार के जिक्र पर,
और तू है कि अक्स पर मेरे
अश्क बहाती रही अक्सर।
अगर मालूम होता मुझपर
जांनिसारी की बातें तेरी,
निकाल कर दिल अपना
रख देता कदमों पर तेरे।
शुक्र है खुदा का कि
जान है बाकी मुझमें अभी,
तेरे प्यार के सदके की खातिर
जिस्म है सलामत अपना।
अरमानों पर मुहब्बत के तेरे अब
हद से अपनी मैं गुजर जाऊंगा,
ज़माने की फ़िक्र किसे अब
जज़्बात मुहब्बत के बहक जाने दो।
मैं रहूं तुम रहो और सुहाना शमा हो,
दरमियां मुहब्बत के फकत दास्तां हो,
प्यार का गुलिस्तां और खुद बागबां हों,
ज़िन्दगी में मुहब्बत का मक़सद जवां हो.....!