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डॉ. प्रदीप कुमार

Tragedy

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डॉ. प्रदीप कुमार

Tragedy

प्यार में कालाबाजारी

प्यार में कालाबाजारी

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बस किसी को पा लेने तक का सारा मसला है, 

इश्क़, मोहब्बत, इबादत, इज्ज़त और शराफत।

फिर तो सब कुछ आसान-सा लगने लगता है, 

जुदाई, तन्हाई, गम, सब सामान्य लगने लगता है।

पहले फितूर चढ़ता है, फिर बुखार सारा उतरता है,

किसी को भूल पाना बहुत मुश्किल लगता है।

जब हम पास आते हैं, सारी दुनिया भूल जाते हैं,

अपनी ही सांसों से दूर जाना, सबको ही अखरता है।

बाजार, खरीदारी, सब में कालाबाजारी, 

इश्क़ ही बचा था, अब वो भी यहां से गुजरता है।

चाहत नहीं रहती चाहत, बढ़ने लगती है नफ़रत, देखना चाहते थे जिसे हर पल, 

अब उसका सामना करने से दिल डरता है।

जिसे पाने की हसरत लिए फिरते थे सारे जहां में,

उसको पाकर, फिर खोकर, उससे दूर होकर, 

सीखते हैं कई सबक कि कोई कहीं नहीं ठहरता है।

मानव-मन चंचल है, इसको बहलाना सरल है, 

कभी डूब जाता है किनारे पर, 

कभी दरिया पार करता है।


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