पुस्तक की व्यथा
पुस्तक की व्यथा
कोने में ,जर्जर सी अकेली खड़ी है,
साथियों के साथ एक रैक में पड़ी है।
अपने सारे पन्नों को समेटे,
ऊपर गंदा सा आवरण लपेटे।
थोड़ी बदहवास सी पुरानी लगती है,
किसी की आपबीती कहानी लगती है।
खुद की मौत को दे रही दस्तक है,
ये लाइब्रेरी में पड़ी एक पुस्तक है।
तकनीकी के चलते लोगों ने,
पुस्तकों को पढ़ना छोड़ दिया।
मोबाइल से जोड़कर अपना नाता,
इन से क्यों मुंह मोड़ लिया ?
एक समय था वह हर मेज पर,
पड़ी भाग्य को इठलाती थी।
अपने अंदर ज्ञान समेटे,
वो विद्या दीप जलाती थी।
एक समय सखियों के साथ,
लाइब्रेरी की शोभा बढ़ाती थी।
छोटे बड़े बच्चे बूढ़ों को,
नई कहानियां सुनाती थी।
बदली समय की ऐसी धारा,
घट गया पुस्तक का मोल।
खुद को अकेले में कोस रही
जो थी कि कभी अनमोल।