पुरुष की अभिलाषा
पुरुष की अभिलाषा
चंचल , चितवन , चपल ,चतुर ,
मृगनयनी तुम प्रेयसी
वनमाला सी ,
पायल , कंगना , झुमकी , बिंदिया ,
पहन के तुम बागों में विचरती
मधुबाला सी !
तुम प्रकृति मैं पुरुष
करता हर वक्त तुमसे मिलने की
अभिलाषा सी ,
संयोग मिलन जब-जब
हुआ हमारा तब-तब नवजीवन का
एक फूल खिला !
ना तुम पूरी ना मैं पूरा
ये अलग-अलग हम दोनों का
होना है अधूरा ,
पत्थर हूँ मैं श्रृंगार हो तुम
मैं कठोर कोमल हो तुम !
ये निर्मल मिलन हमारा
करता एक जीवन पूरा ,
और इस मिलन से हमारे
हो एक नव जीवन की
पूरी अभिलाषा सी !!

