" पुकार "
" पुकार "
पुकार उस नारी के लिए लिखी है।
जिसके पति चरित्र पर संदेह करते
हैं, चाहे वह अपने दायित्व पूरे करती
है। चित्कार उठती है उसकी आत्मा ।
सीता हूँ मैं क्या तुम राम हो?
पुनीता हूँ मैं क्या तुम पुनीत हो?
सति की आशा रखते हो।
क्या तुम जति हो?
धरती का शील भंग किया
गगन ने।
धीरे से पवन चली
जब,, शबनम की बूंदें
किसी के पांव के नीचे
दबकर रह ग ई,,,
जब किसी पेड़ पर
कौंध बिजली गिरी,,, फिर
कोई क्या करे जब,,
बाढ़ ही खेत को खा
जाये।