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Arunima Bahadur

Action

4  

Arunima Bahadur

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पत्थर

पत्थर

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बहुत सशक्त है वो,

स्वीकार कर हर परिस्तिथि,

निखारती है हर पत्थर,

कभी तोड़ कर,

कभी तराश कर,


कभी प्रेम से नव रूप देकर,

गढ़ती है हर पत्थर को नव रूप में,

न कोई चाह,

केवल करुणा,प्रेम संग,

चल कर्तव्य पथ की राह,

गढ़ देती हर पाषाण को,

एक नव रूप में,


फिर क्यों कहते हो अबला उसे,

सशक्त है,सबला है वो,

तभी तो गढ़ने को,

गलकर, पिघलकर, कठोर बनकर,

हर अश्त्र,शस्त्र,शास्त्र,सस्कार से,

तोड़ हर पत्थर,

गढ़ देती है नव रूप में,

देखना चाहोगे वो तराशा,निखारा पत्थर,

देखो जरा आइना,

आएगा नजर,


एक निखरा,संवरा,एक प्यारा सा रूप,

यही है एक नारी का निखार,

एक नारी का प्यार,

सजा संवरा तराशा पत्थर,

कर लो फिर प्रेम,


अपनी उस निर्माता को,

खोल दो अब उसके सारे बंधन,

क्या पता गढ़ दे वो,

वसुधा के कण कण को,

एक प्यारे रूप में,

एक बासंती चोले में,

ढाल दे वसुधैव कुटुंबकम में। 


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