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Dinesh Sen

Abstract

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Dinesh Sen

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पत्नि

पत्नि

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हर अरमान ढह गए 

साथ तेरा जो पाया

न रहा बाकी मुझमें

कहीं मेरा साया

नाम खोया ग्राम खोया


खोये साथ सहेली

मैं खुद आज बन गई

जैसे उलझी एक पहेली

खो अपना सर्वस्व आज


मैं तुझमें खोने आई हूं

फिर भी एक सवाल मैं

तेरी अपनी हूं या पराई हूं।


लदी हूं गहनों से तेरे

है सिंदूर तेरे ही नाम का

मानू हर फरमान तेरा

सुबह से लेकर शाम का


एक अकेली घर में फिर भी

करती सारे काम तमाम

फिर भी जाने क्यूं न आए 

परिणामों में मेरा नाम


फर्क बस इतना कल तक बेटी

आज बहू बन आई हूं

फिर भी एक सवाल मैं

तेरी अपनी हूं या पराई हूं।


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