प्रतिमा
प्रतिमा
कान बंद करने पर भी
गूंज रही थी
वो गाली
उसके कानों में बार -बार
जो सीधा दिल पर लगी थी
मेकअप से छुपाने पर भी
साफ दिख रहे थे
वो निशान
जो सिर्फ़ गालों पर नहीं
आत्मा पर बने थे
बाहर से सब शान्त था
मगर वो चीख रही थी
अन्दर से
जोर - जोर से
सारी रात रोती रही
बिलखती रही
तन्हा - अकेली
मातम मनाती रही
क्योकिं खन्ड -खन्ड
हो चुकी थी वो प्रतिमा
जिसे पूजती थी वो
परमेश्वर मानकर।