प्रताड़ित नारी
प्रताड़ित नारी
हम करते हैं खूब जोश से,
उत्थान की बातें, बदलाव की बातें।
परन्तु क्या बदला है आज भी ?
पहले पुरुष कहता था खुले आम,
नारी उसके चरणों की धूल है।
लेकिन हाँ कुछ तो बदला है,
अब पुरुष यह बात खुले आम नहीं कहता,
परन्तु दिल में तो उसके यही है।
उसे हरगिज नहीं सही जाती,
नारी की प्रगति।
नारी तो आज भी प्रताड़ित है,
और शायद उसने इसे अपनी,
नियति ही मान लिया है।
सच, कभी-कभी अन्याय होता देख,
लगता है धरती क्यों नहीं फटती,
आसमान क्यों नहीं गिरता,
क्यों नहीं हो जाता संसार तहस-नहस,
लेकिन नहीं ! शायद ईश्वर को भी,
यही मंजूर है,
वह भी स्वर्ग में,
अपनी सेवा करते हुए,
यह सब कुछ मूक होकर देख रहा है l
