वफ़ा
वफ़ा
वफ़ा का यही सिला मिलता है
यह कोई तो बता देता हमें
यह कोई तो समझा देता हमे
यह शिकवा तो न रहता हमें
कि अनजान थे हम इससे
जब ढाते रहे वो जुल्म हमपे
सहते रहे हम
उनको नासमझ समझकर
परन्तु अब इम्तहां की हद थी
हमें दूर करके सबसे
बीच भंवर में
बिना किसी साहिल के छोड़
वो हमसे किनारा कर गए
और सोचा भी नहीं
पल भर भी हमारे लिये।