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Pramish Abhishek

Tragedy

4  

Pramish Abhishek

Tragedy

ये बेचैनियां और मेरा अधूरापन

ये बेचैनियां और मेरा अधूरापन

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बेचैनियों का उन्माद बढ़ने लगा है,

अधूरापन जीवन में भरने लगा है।

जिम्मेदारियां रोड़े अटका रही है।

घड़ी की सुइयों से निकलती घुप्प अंधेरे में

खच खच की आवाज़

मानो कानो से खून निकाल रही है।

हालात गंभीर है,

क्यूंकि सपनों का अकाल आन पड़ा है।

जीवन निर्विरोध निरुत्तर होके बस गुजर ही रहा है।

मन स्थिल सा प्रतीत हो रहा है,

शरीर अनासक्त सा हो रहा है।

बिखरे ख्वाबों की गुर्राहट महसूस हो रही है।

खुद को दिए सारे धोखे याद आ रहे है

कैसे कह दूं कि.....कदम मेरे ठिठक रहे हैं ।



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