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Lakshman Jha

Tragedy

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Lakshman Jha

Tragedy

प्रवासियों का दर्द

प्रवासियों का दर्द

1 min
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कोरोना तो बहाना है,

हमें प्रवासी मज़दूरों को

अपने राज्यों से भगाना है !

ऐसा मौका भला फिर

कहाँ आएगा ?

फिर कहाँ कोरोना का कहर

टूट पायेगा ?

हम समय -समय पर

आन्दोलन करते रहे,

अपनी राजनीति-

रोटी सेंकते रहे !

दूसरे प्रान्त के लोगों को

हम अपने देश में

प्रवासी सोचने लगे,

वर्षों तक आन्दोलन

की लहर चलती रहीं

लोग मरने लगे !!


दुःख दर्द सहकर

ग्लानिओं की घूंट हम पीते रहे !

हमने नए नगरों का

निर्माण किया ,

सड़क, पुल, अट्टालिकाएं

बनाकर महानगरों

को रूप दिया !!

खुद हम खुले

आकाश तले रहकर

आपके सुनहरे

कल को संवारा है ,

औध्योगिक बुलंदिओं को छूने

को सिखाया है !!


हम मज़दूर हैं,

मजबूर नहीं,

हमें भगाने का

बहाना मिल गया!

अब प्रान्त, प्रान्त खुद में

सिमट जायेगा,

यह देश फिर क्षेत्रीयता ,

वैमनष्यता और संकुचित रह जायेगा !!


कोरोना के कहरों से

हमें यूँ लगने लगा,

कि फिर कोई

"रासायनिक युद्ध "

सिरिया में होने लगा !!

प्रवासी शरणार्थी बनने लगे,

लम्बी -लम्बी कतारों से

अहर्निश चलने लगे !!


भूख, प्यास, चिलचिलाती धुप

सर पर गठरियाँ लादकर

अपने गांव की ओर चल दिए ,

बच्चे, बूढ़े, बीमार तन को लिए

जंगल, पगडंडियों

और सड़कों पर चल दिए !!


पहले हम यदि अपने

गाँव स्वयं आ जाते ,

हमें यह दुःख झेलना नहीं पड़ता,

अपने लोगों के बीच ही

हमको सदा रहना पड़ता !!



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