ये शाम
ये शाम
ये शाम जब आती है
अपने साथ लाती है
यह रंगीन आसमान
छितराये बादलों में
छुपता सूरज
जैसे माँ के आँचल में
छुपता लाल
और यह खिलखिलाता चाँद
खेलता असंख्य तारों से
जैसे खेलते बाल कृष्ण
गोपियों संग
और इसी के साथ आ जाती है
कुछ यादों की
लहरें
दिल के शांत समंदर में
होले से हिचकोले लेते हुये
ये यादें तोड़ सा जाती है
तो कभी जोड़ भी जाती है
दूर उन सब अपनों से रहते हुए
बहुत जालिम है यह शाम
जब भी पाया अकेला खुद को
तो रुला जाती है
और जब हो साथ किसी का
तो हँसा जाती है
कोई भी नहीं बच पता
इसकी रंगीनियों व तन्हाइयों से