मैं भारतीय मतदाता
मैं भारतीय मतदाता
मेरी त्रासदी देखें
मैं न कर पाया
अपनी पहचान प्रतिपादित
मेरे बलबूते पे
ऐंठ जमा जाते नेता
मैं रह जाता आश्चर्यचकित
मेरी विडंबना है
ऊँचे पद करवाना सुशोभित
किस्मत मेरी रहे विलंबित
मेरा बोझा उठाने का
दम भर, जेबें अपनी भर जायें
जान न पाया, ये हैं गिरगिट
मुझसे मैं खफा हूँ
क्यों बहकता रहा बहकावे में
क्यों बिकता रहा बोतलों पे
देश का दम भरता हूँ
बंटवारे की हामी भरता हूँ
समझ छोड़, जिद्द करता हूँ
समझ मेरी झुठलाती मुझे
दूर की न कभी सोच पाऊं मैं
तभी तो मंझधार में मेरी नैय्या
धर्मों में उलझ कर
इंसानियत से कहीं दूर हूँ
अब आन पड़ी को झेलूँ मैं
मजबूरियाँ तो हैं ही
पर सब्र की भी रही है कमी
इसलिये मुसीबतें बढ़ीं हैं
अगर बोये का फल
सब जाने मिलता ही है
प्रश्नचिन्ह यही चिढ़ाए है मुझ को