जीवन धारा
जीवन धारा
युगों युगांतरों से अग्रसर
चली जीवन धारा परस्पर
वनस्पति एवं जीव लिए
धरा हमारी संपन्न जीए
क्रुद्ध भी होना नैसर्गिक
पुलकित होना है अगर वाँछित
धाराओं की प्रवृत्ती है
मंझधार, उफान और बहाव
समय की धारा का उल्लेख
नहीं हो पाये बिना द्वन्द्व
इस टकराव को जो समझें
पा लेंगे परस्परता का ज्ञान
नहीं होता कोई बौद्ध
तीव्रतायों के वेग में विचलित
