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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

सिगरेट

सिगरेट

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ये तो सिगरेट की पहचान है

आदमी की ले लेती ये जान है

कब बन्द करेगा इंसान इसे पीना,


ये खत्म कर देती इंसान का जीना

ये जिंदगी को कर देती बेजान है

आदमी जीता है, न ही मरता है

खांसकर वक्त गुजारा करता है


ये शनै-शनै छीन लेती मुस्कान है

आदमी की ले लेती ये जान है

युवा सिगरेट को ऐसे सुलागते हैं

जैसे वो चाँद की सैर पर जाते हैं


ये तो युवाओं में घोल रही शैतान है

ये हरपल ही कमज़ोर कर रही है,

साखी तेरी सांसों का तूफ़ान है

वक्त रहते ये धूम्रपान छोड़ भी दो


पैसे के साथ खुद को जिंदगी दो

अपनी अच्छी आदतों व कर्मो से,

आदमी रोशन करता खानदान है।


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