प्रणय प्रसंग : भाग एक
प्रणय प्रसंग : भाग एक
चांदनी कल छत पे आयी,
बोली मुझसे बात कर।
कुछ सुन मेरी कुछ तू सुना,
कुछ गीत मन के गुनगुना,
और शर्त रखी मौन रह,
नज़रों से कर सब कुछ बयां I
मैं बोला सुन ओ चांदनी,
ये बात मुझको जाननी,
मैं तो तेरा हूं चकोर ना,
तूने मुझको ही फिर क्यूं चुना II
इठला के चहकी चांदनी,
बोली चुनना तुझको लाज़मी,
तू रोज़ मुझको देखकर,
पन्ने पे कुछ लिखता सही I
कुछ ना छुपा मुझे है पता,
हाल-ए-ज़हन तू दे बता,
चल मान भी ले बात ये,
कि तू मुझको ही है चाहता II
मैं हंस के बोला सुन प्रिये,
तू ओज है धारण किए,
तुझे देखता हूं हर निशा,
पर मैं लिखता ना तेरे लिए I
होती निशा मुझसे जवान,
क्यूं ना करूं खुद पर गुमान,
पर मुझसे आगे कौन है,
जिसमें बसे हैं तेरे प्राण II
वो मखमली सी एक छवि,
सीपी के मोती सी नयी,
बहती है अंतर्मन में मेरे,
वो सुरमई सी जान्हवी I
तेरे नूर को आंखों में भर,
कागज़ कलम स्याही लिए,
मैं सोचता बस उस छवि को,
और लिखता बस उसके लिए II