सफ़र
सफ़र
तनिक ठहर जा पथिक
बहुत लम्बा है तेरा सफ़र
थक जायेगा गिर जायेगा
कुछ तो कर ले फिकर।
जल्दी चलकर क्या पायेगा,
कितना दूर निकल जायेगा,
दुनिया की इस भेंड़चाल में,
बकरी बनकर रह जायेगा,
माना है अभिमन्यु तू,
पर जीवन के इस चक्रव्यूह,
के कितने द्वार तोड़ पायेगा।
सफल हो गया गर फिर भी,
तो अंतर्मन में पछतायेगा।
चार पहर के जीवन में
तू दौड़ा तीन पहर,
जीवन के रस, राग,
रंग की थी न तुझे खबर।
तनिक ठहर जा पथिक
बहुत लम्बा है तेरा सफ़र।
पग-पग चल चलता जायेगा,
अपनी नई डगर बनाएगा,
जीवन की अनेक त्रुटियों से,
अनायास बचता जायेगा,
पक्का एक इरादा कर,
खुद से ही ये वादा कर,
लक्ष्य यदि है पर्वत चोटी,
तो तू पर्वत चढ़ जायेगा।
करनी कठिन है कथनी
सुलभ मैं फिर भी कहता मगर।
तनिक ठहर जा पथिक
बहुत लम्बा है तेरा सफ़र।