मेरा अशांत मन
मेरा अशांत मन
मेरा अशांत मन कुछ करना चाहता है
आशाओं के बोझ तले दबा ये छोटे बच्चे सा,
ठूंठ हो चुके पेड़ के अंतिम सूखे पत्ते सा,
ऊपर उड़कर मस्त हवा में झुमके बहना चाहता है।
मेरा अशांत मन कुछ करना चाहता है
हो जाता है दुखी कभी ,कभी खिल उठता है फूलों सा,
कभी रुई सा कोमल लगता,कभी चुभ जाता है शूलों सा
कभी चाहता दम भर जीना,एक पल में मरना चाहता है।
मेरा अशांत मन कुछ करना चाहता है
चंचल है डोलकर बहुत दूर चला जाता है,
फिर जीने की लालसाओं में बंधकर वापस लौट आता है,
कभी भविष्य, कभी भूत, कभी वर्तमान में रहना चाहता है।
मेरा अशांत मन कुछ करना चाहता है
नदी की तरह बहना, तितली की तरह उड़ना,
चांदनी की तरह झरना चाहता है
मेरा अशांत मन अब बस शांत रहना चाहता है।