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Viral Rawat

Abstract

4.2  

Viral Rawat

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जीवन का साम्य : अन्वेषण (भाग एक)

जीवन का साम्य : अन्वेषण (भाग एक)

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लो बात मेरी तुम ध्यान से सुन,

एक ख़ास उदाहरण देता हूं।

जीवन के साम्य-असाम्य का,

एक निश्चित कारण देता हूं।।


कोई धन पिपासा में लीन दिखा,

कोई शासन में तल्लीन दिखा,

कोई कायासुख की तृष्णा में,

किसी काया के आधीन दिखा,

ये कारक ही कारण हैं जो,

सत्व को तामस करते हैं,

ज्योति से जीव बिछड़ता है।

जीवन का साम्य बिगड़ता है।।


चैतन्य-शिथिलता जब मानस को,

अकर्मण्य बनाती है,

अंतर्मन विचलित होता है,

व्याकुलता बढ़ती जाती है,

कोई शून्य का सपना देखता है, 


कोई शून्य में सपना देखता है,

अंतर्मन व्यापित परमशून्य,

जब नहीं दिखाई पड़ता है।

जीवन का साम्य बिगड़ता है।।


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