गाँव और नगर
गाँव और नगर
गाँव में रहने वाले मित्र ने नगर मित्र को पत्र लिखा
पूछा बतलाओ जीवन कैसा है वहां का मेरे सखा।
हम तो छप्पर में हैं तुम तो नये बड़े घर में होगे ,
हम तो गर्मी में हैं आशा है तुम कूलर में होगे।
हम टूटी साइकिल पर हैं पर तुम तो मोटर में होगे,
दाल-रोटी में खुश हैं हम, तुम पिज़्ज़ा बर्गर में होगे।।
फुर्सत मिले नौकरी से गर, कुशल-क्षेम तुम देना बता
पूछा बतलाओ जीवन कैसा है वहां का मेरे सखा।
पाकर पाती ग्राम मित्र की नगर मित्र भी प्रसन्न हुआ,
अपना प्रत्युत्तर चिट्ठी में उसने भी यूँ लिख भेजा।
नया बड़ा घर है पर पेड़ नही है छाँव कहाँ ढूंढें,
अंतर्मन में द्वेष सभी के निर्मल भाव कहाँ ढूंढें ।
धरा , वायु, आकाश सभी दूषित हैं ठांव कहाँ ढूंढें,
छोड़ गाँव आ बसे नगर में , फिर से गाँव कहाँ ढूंढें।।
तुम पीते हो अमृत सा जल हम पीते हैं ज़हर सखा
छोड़ गाँव मत आना यहाँ, गाँव से बुरा है नगर सखा।