प्रकृति से खिलवाड़
प्रकृति से खिलवाड़
एक ग्लेशियर खिसका,बहुतों को साथ ले गया
प्रकृति के साथ खिलवाड़ का वो अंजाम दे गया
कितनी सुरंगे बनाई वहां,कितने बांध बनाये वहां,
बिजली योजना को एक झटके मे धक्का दे गया
कितने हम नादान,पर्यावरण का कर रहे अपमान है,
ये प्रकृति का अपमान हम लोगों की जान ले गया
एक ग्लेशियर खिसका बहुतों को साथ ले गया
गलती की सजास्वरूप हमे आंसू झोली भर दे गया
वो बेचारा हिमालय सिसक-सिसक चिल्लाता रहा,
रो-रोकर अपने कीमती आंसू यूँ ही बहाता रहा,
प्राकृतिक आपदा को मे आ,बैल मुझे मार कहता रहा
जब टूटा ग्लेशियर फ़िजूल में ही खुदा को कोसता रहा
केदारनाथ की त्रासदी को गफलत में भुलाता रहा
जरा उन्हें पूंछो जिनका कोई ग्लेशियर में दबा रहा
अब तो हमको सुधरना ही होगा साखी नही तो,
प्रकृति माँ का कोप जेहन में पानी से भी जलाता रहा।