प्रज्ञादीप
प्रज्ञादीप
तारीख चौबीस
महीना ग्यारह था,
जब आकर जीवन में,
तुमने मुझको संवारा था।
सदी इक्कीसवीं
साल तेरह था,
साक्षी अग्नि थी
सातवां फेरा था।।
तब से अब तक
बीते नौ साल हैं,
जीए हैं भरपूर
हर लम्हा कमाल है।
कुछ में आंसू भी है,
कुछ में मुस्कान भी,
कुछ भरे हैं दर्द से
कुछ में खुशियां तमाम भी।।
पर हर लम्हे में हैं
बस बातें तुम्हारी
सब में सपने तुम्हारे,
सब में हसरत तुम्हारी।।
मेरी सांसों में सदा
खुशबू तुम्हारी रहती है,
आंखों में छवि
बस तुम्हारी रहती है,
मेरा नहीं राज कोई
जो न तुमको पता हो।
माफ़ करना मुझे,
जो कभी मुझसे खता हो,
गुस्सैल हूं,
बिगड़ैल हूं,
पर आदमी प्यारा हूं।।
मैं हर कल आज कल में
सदा तुम्हारा हूं,