कुंवारी वैश्या
कुंवारी वैश्या
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खरीददार सभी सौदा खरीद जा चुके मुझसे
पर किसी ने अपना बनाया ही नहीं
सच कहूं कुंवारी हूं मैं,
अब तक किसी ने अपनाया ही नहीं,
बिक गई बाज़ार में मैं,
वक्त बेहद कम लगा,
बैचेन थे ग्राहक सभी,
किसी को न गम लगा,
वो कुछ पलों की बेशर्मी मेरी
रास आती है उनको,
वो नज़र जिसमे हया न हो
बहुत भाती है उनको,
पर झुका लूं नज़रे मैं भी
कभी ऐसा हुआ ही नहीं,
मैं हो जाऊं दीवानी किसी की
ऐसे किसी ने छुआ ही नहीं,
कुंवारी हूं अबतलक सच कहूं तुमसे
मिलन मेरे मन का कभी हुआ ही नहीं।।
खरीददार सभी सौदा खरीद जा चुके मुझसे
अब तक किसी ने अपनाया ही नहीं,
सच कहूं कुंवारी हूं मैं,
किसी ने अबतलक अपना बनाया ही नहीं।।
