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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract

4.5  

अंकित शर्मा (आज़ाद)

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सेवा निवृत्ति

सेवा निवृत्ति

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कलियों का मुकद्दर है

फूल बन कर खिल जाना

खुशबू चमन में बिखराना

और फ़िर डाली से टूट कर

मिट्टी को गले लगाना ।


आपने भी कली की तरह 

इस नौकरी को पाया होगा 

बैठे होंगे जिस कार्यालय में

उसे दिल से अपनाया होगा

सुंदर मन इतना लिए हैं

विद्यालय का हर कोना महका होगा

मुस्कुराया होगा


जब फूल सबाब पर आया होगा

खुद आप आगे बड़े होंगे

संस्था को और बड़ा बनाया होगा


आपकी उपलब्धियां का जश्न

जाने कितने नन्हे बच्चों ने मनाया होगा।

जाने कितने पत्थर के टुकड़े

हीरे की शक्ल पाए होंगे

जाने कितने मोती आपने चमकाए होंगे।


आज विदाई की बेला है

पर सबको पता है

दुनियां ऐसा ही मेला है

समय अपनी गति से चलता है

सबको बहुत दौड़ाता है

यहां जो कुछ भी मिलता है

कभी न कभी खो जाता है


मगर आपके जाते पे गर सबके होंठो पे हंसी है

अगर रूखसती पर आपकी, कुछ आंखों में नमी है

तो आपके जीवन में और क्या कमी है

ईश्वर आप पर बहुत कृपा बरसाए

दुनिया की सारी मस्ती रिटायरमेंट के बाद आए


आप खुश रहें मस्त रहें

खूब लंबी उम्र जिएं

आपके हांथ सदा हम छोटों के सर पर रहें

स्नेहिल आशीष लिए।


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