नारी
नारी
मन ने कहा कोई गीत गाऊं,
शब्दों से अपने कुछ मुस्कुराऊं,
तुमसे है जीवन तुम ही से हैं खुशियां,
उधारी को थोड़ा सा तो चुकाऊं,
मन ने कहा कोई गीत गाऊं।।
पूर्णता लिए तुम आईं इस जगत में,
ईश्वर की बेटी था तुम्हें पुकारा ,
लक्ष्मी कहा, कहा सरस्वती भी,
कभी दुर्गा भी रखा नाम तुम्हारा,
तुम मन से चंचल, कोमल सदा से,
देवी सा पावन रूप तुम्हारा,
पकड़ कर के उंगली जब बोलती थी तुम,
तो निवेदन तुम्हारा कैसे ठुकराऊं,
शान में तुम्हारी कोई गीत गाऊं।
उधारी को थोड़ा सा तो चुकाऊं।।
जब बहिन तुम बनी तो ,खिलखिलाई खुद ही खुशियां,
अपने हिस्से से तुमने, मुझको खिलाया,
लगता है मुझको, जब बांधी तुमने राखी,
मुझमें जिम्मेदारी का नया भाव आया,
तुमसे दिए उत्तर कई पहेलियों के,
तुम थीं तो सवालों से मैं जूझ पाया,
तुम धीरता की धोतक, तुम वीरता का कारण,
बोलो शान में तुम्हारी कैसे न गुनगुनाऊं,
शब्दों से अपने कुछ मुस्कुराऊं।
उधारी को थोड़ा सा तो चुकाऊं।।
तुम आत्मा का बंधन आत्मीयता से बांधो,
रखती हो नियमों में अच्छी कड़ाई,
तुम पत्नी बनीं तो हाथ थामती हो ऐसे,
मेरे लिए तुम यम से करती लड़ाई,
व्रत करती हो अक्सर मेरी सलामती को,
कैसे न करूं मैं तुम्हारी बढ़ाई,
तुम सच्ची दोस्ती हो, तुमसे जीवित हैं खुशियां,
अब कौन कौन खूबी मैं तुममें गिनाऊं
शान में तुम्हारी कोई गीत गाऊं।
उधारी को थोड़ा सा तो चुकाऊं।।
रूप मां का तुम्हारा, शिखर सब पदों का,
धन्य हुआ तुम्हारी गोद में मैं आकर,
तुमसे जन्म है, है अस्तित्व तुमसे,
तुमसे ही जीवन के हैं सारे आखर,
मैं तो भजूंगा नित चरण तुम्हारे,
नहीं चाहिए और कुछ भी ,बस एक तुमको पाकर,
तुम ममता की मूरत, तुम सृजन की हो कारक,
तुम्हारे गुणों को क्यों न बखाऊं,
शान में तुम्हारी कोई गीत गाऊं।
उधारी को थोड़ा सा तो चुकाऊं।।
तुम हर रूप में हो,हजार दफा बेहतर,
शक्ति तुमसे पाकर मैं जिंदगी हूं जीता,
तुम समझ मुझसे बेहतर, तुम क्रियान्वन भी अव्वल,
यदि मंत्र एक मैं हूं , तो तुम पूरी गीता,
ईश्वर की तुम पर बहुत ही कृपा है,
नतमस्तक समक्ष तुम्हारे खुद को मैं पाऊं,
उधारी को थोड़ा सा तो चुकाऊं।
मन ने कहा मैं कोई गीत गाऊं।।
