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अंकित शर्मा (आज़ाद)

Abstract

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अंकित शर्मा (आज़ाद)

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अलख: नई सुबह

अलख: नई सुबह

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आई है जैसे नई सुबह,

नई अलख जगने को है,

नई दीप्ति से जगमग मन,

नई कीर्ति सजने को है।


किंतु कल का है महत ना कम,

जो आज दिव्य सी किरण सजी,

विगत किसी पल के उदर में ही,

छटा आज की है उपजी।


कोमल पुष्प उपजाना है,

कठोर तना ये ठान चुका,

पर बीज कहां रखता है पेड़,

कौन है अब तक जान सका।


बस यहीं छुपे परमेश्वर हैं,

उनकी है निराली सी माया,

वही तो तारण हारे हैं,

हर धूप में वो शीतल छाया।


हर आज में वो,वो हर कल में,

हर कहीं है वो,वो हर पल में,

वो वैरागी, वो चाहत भी,

आहत भी वो अनाहत भी।


मिली है अब अनमोल डगर,

छोड़ के न मैं अब जाऊं,

आल्हादित है मेरा अंतर,

कैसे किसको क्या बतलाऊं।


अरदास मेरी रब से इतनी,

सबकी तू बस रखना खैर,

ईश्वर मैं बालक तेरा हूं,

मुझे नहीं किसी से कोई बैर।


कर्म किए जाऊं सत से,

मन में तेरा ही ध्यान रहे,

है यही प्रार्थना परमपिता,

तेरे चरणों में स्थान रहे।


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