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Rashmi Prabha

Fantasy

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Rashmi Prabha

Fantasy

प्रिय तुम,

प्रिय तुम,

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तुम्हारे मन में भी 
ख्यालों का बवंडर उठता होगा 
बंद आँखों के सत्य में 
तुम्हारे कदम भी पीछे लौटते होंगे 
इच्छा होती होगी 
फिर से युवा होने की 
दिल-दिमाग के कंधे पर 
गलतियों की जो सजा भार बनकर है 
उसे उतारकर 
नए सिरे से 
खुद को सँवारने का दिल करता होगा !
आँगन, 
छत वाले घर में 
पंछियों के मासूम कलरव संग 
फिर खेलने का मन करता होगा 
किसी कोने में खत लिखने की चाह होगी 
डाकिये के आने पर 

ढेर सारे लिफ़ाफ़े, अंतर्देशीय के बीच 

अपने नाम के खत की तलाश होगी !
अतीत को भूलने की बात तुम भी करते हो 
पर हर घड़ी अतीत में लौटने की चाह 
पुरवइया सी मचलती होगी  … 
पीछे रह गए कुछ चेहरों की तलाश तुम्हें भी होगी 
ग़ज़ल गुनगुनाते हुए 
दोपहर की धूप की ख्वाहिश तुम्हें भी होगी 
… 
तुम मुझसे अलग नहीं 
पगडंडियाँ, सड़कें 
शहर, देश का फर्क होगा 
पर लौटने की चाह एक सी है 
घर,प्यार,  … शरारतें 
तुम भी फिर से पाना चाहते हो 
मैं भी  … 


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