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Praveen Gola

Drama

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Praveen Gola

Drama

परिवार

परिवार

1 min
244


बचपन में सीख मिलती रही,

जवानी में की मन - मरजी,

जब हुआ नुक़सान अपने कर्मो से,

तब दिखा दी अपनी खुदगरजी।


घर छोड़ निकाल गए,

पाने एक मंजिल नई,

मुड़ के ना देखा फिर दोबारा,

घर में थी सबसे तनी।


नए दोस्त बने,

फिर से हुई ढ़ेरों मौज - मस्ती,

धीरे - धीरे एक साथ मिला,

जिसके संग विवाह डोर बंधी।


नई जवानी नई उमंगें,

हर तरफ थी नई तरंगें,

था बस पुराना वो धूमिल सपना,

जिसमे था कभी परिवार अपना।


कुछ समय बाद बना,

मेरा खुद का परिवार,

जब खुशियाँ बढ़कर हो गई,

दो दूनी चार।


मैं भूल चुका था पिछला सारा,

कि मेरा भी कभी था घर कोई प्यारा,

फिर याद आया एक दिन सब सारा,

जब उजड़ा मेरा परिवार बेचारा।


एक दुर्घटना में बचा ना कोई,

जब दुर्भाग्य के आगे मेरी किस्मत रोई,

मैं रह गया बिलकुल अकेला और मारा,

तब माता - पिता ने दिया सहारा।


मैंने हाथ जोड़ उन्हे शीश नवाया,

उन्होने आगे बढ़ मुझे गले लगाया,

तब रूँधे गले से वो इतना कह पाये,

कि सुबह का भूला घर को आए।


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