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Praveen Gola

Romance

3  

Praveen Gola

Romance

हर तरह

हर तरह

1 min
50



टकरा गये थे तेरे छाती के बाल ,
मेरे चेहरे से कुछ इस तरह ,
कि होश खो गई थी मैं .....
उस अंधेरी रात में हर तरह |

तूने हट जाने को कह दिया ,
अपने ऊपर से मुझे सनम ,
वरना सारी रात कश्मकश होती ,
तेरे बदन की गर्मी से हर तरह |

मैं महसूस करती गई अपने अंदर ,
तेरे वजूद का हर जर्रा - जर्रा ,
तू खामोश सा मुँह उधर कर  ,
पिघलता रहा सारी रात हर तरह |

बड़ा अजीब सा इश्क था वो अपना ,
जब आग भूसा दोनो मचल रहे थे ,
बस बदनामी की आग से डर के ,
खुद को ढ़ाँप पलकें मूंदी थी हर तरह |

कुछ थकान और नींद की गहराई में ,
तो कुछ बेहोशी की शहनाई में ,
हाथ छुड़ाने की लाख कोशिश की मैने ,
मगर तेरी पकड़ थी कसी हर तरह |

मैं सपने में भी तुझसे हार रही थी ,
तू नींद में भी मुझसे जीत रहा था ,
दिलों को दिलों की आदत हुई थी ,
ऐसी कशिश थी हम दोनो में हर तरह |

सुबह सूरज की किरणों ने दस्तक सुनाई ,
बिछड़ने की घड़ी थी फिर करीब आई ,
खुद को संभाल जब दिखा दिन का उजाला ,
आँखों में अश्रुओं की धारा बही थी हर तरह |

टकरा गये थे तेरे छाती के बाल ,
मेरे चेहरे से कुछ इस तरह ,
कि होश खो गई थी मैं .....
उस अंधेरी रात में हर तरह ||










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