जिन्दगी की बाँसुरी की तान तुम
जिन्दगी की बाँसुरी की तान तुम
जिन्दगी की बाँसुरी को नव्य तान मिल गयी
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी
काँपते हुए करों से जब तुम्हें प्रथम छुआ
सिहरने लहर गईं ओ!यार जाने क्या हुआ.
निष्कलंक चाँद के चकोर नैन जब हुए
तब लगा कि जिन्दगी है जिन्दगी नहीं जुआ
तुम गले लगे तो लगा बिजलियाँ मचल गईं
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी
प्रेम पीर की प्रतीत थी प्रत्येक पोर में.
मुक्त हृदय बह रहा था संग हर हिलोर में
प्रस्फुटित हुए कमल हुए भ्रमर उतावले
तेरे दिल की रोर सुनी अपने दिल के शोर में
और प्यार की घिरी घटा बुझा अनल गयी
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी
प्यार जब जगा प्रत्येक आवरण उलट गया
डूब कर लगा कि जैसे आज मैं उबर गया
समीकरण तुम्हारे संस्पर्श से सुलझ गये
जिन्दगी की गीतिका का व्याकरण सँवर गया
नेहताप से कठोर उरशिला पिघल गयी
तुम मिले तो यूँ लगा कि चाँदनी सी खिल गयी।

